
टाइप-1 डायबिटीज, जिसे जुवेनिल डायबिटीज के रूप में भी जाना जाता है, डायबिटीज मेलिटस का ही एक रूप है जिसमें पैनक्रिया से बहुत कम इंसुलिन पैदा होता है जिसके कारण शरीर में ब्लड शुगर का स्तर ज्यादा हो जाता है। इंसुलिन एक ऐसा हार्मोन है जो चीनी या ग्लूकोज को टिश्यूओं की कोशिकाओं में ले जाने में मदद करता है।
जुवेनिल डायबिटीज वर्षों तक या जीवन भर भी रह सकती है। ऐसी डायबिटीज के लिए आहार और व्यायाम महत्वपूर्ण है।
सभी डायबिटीज के मामलों में टाइप-1 डायबिटीज का अनुमानित 5 से 10 प्रतिशत है। यह आम तौर पर बच्चों और युवा वयस्कों में होती है और भारत में हर साल 1 मिलियन से ज्यादा मामलों की सूचना दी जाती है।
टाइप-1 डायबिटीज शरीर को कैसे प्रभावित करती है?
डायबिटीज का मतलब शरीर में इंसुलिन की सही मात्रा ना होना है। इंसुलिन के बिना टाइप-1 डायबिटीज के मामले में ग्लूकोज कोशिकाओं में नहीं जाता जो ऊर्जा के लिए जरूरी है जिससे आप कमजोर, भूखा और प्यासा महसूस करते हैं। इससे खून और मूत्र में केटोन बढ़ सकते हैं| जो यह संकेत देती है कि शरीर में ऊर्जा पाने के लिए वसा और प्रोटीन टूट रही है। पर्याप्त इंसुलिन भी लिवर को ज्यादा ग्लूकोज पास करने का कारण बनता है। समय के साथ-साथ ब्लड ग्लूकोज का ऊंचा स्तर नसों और खून की नलियों को नुकसान पहुंचा सकता है|
टाइप-1 डायबिटीज के कारण क्या हैं?
टाइप-1 डायबिटीज के कारण के बारे में कोई जानकारी नहीं है। नीचे कुछ सिद्धांत बताये गये हैं जिन्हें इसके होने कारण के रूप में आगे रखा गया है:
जेनेटिक्स – जुवेनिल डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है जिसमें 50 से भी ज्यादा जीन हैं। लोसी के संयोजन के आधार पर ये सब प्रभावशाली, अवशिष्ट या बीच में कहीं भी हो सकती है।
पर्यावरण – पर्यावरणीय कारकों में आहार एजेंट जैसे ग्लूकन में प्रोटीन, वजन घटने का समय, आंत माइक्रोबायोटा और वायरल संक्रमण शामिल हैं।
रसायन और दवाएं – कुछ रसायन और दवाएं पैनक्रिअटिक कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं जो इंसुलिन के नुकसान का कारण हो सकते हैं।
टाइप-1 डायबिटीज के खतरे के कारक क्या हैं?
पारिवारिक इतिहास – माता-पिता या भाई को होने से टाइप-1 डायबिटीज की स्थिति को विकसित करने में थोड़ा ज्यादा खतरा होता है।
जेनेटिक्स – कुछ जीनों की उपस्थिति टाइप-1 डायबिटीज के विकास के जोखिम की तरफ इशारा करती है।
भूगोल – भूमध्य रेखा से दूर जाने पर जुवेनिल डायबिटीज की घटनाएँ बढ़ जाती हैं|
आयु – टाइप-1 डायबिटीज किसी भी उम्र में दिखाई दे सकती है लेकिन यह 4 से 7 साल के बच्चों में और 10 से 14 वर्ष के बच्चों को होती है।
टाइप-1 डायबिटीज के लक्षण क्या हैं?
टाइप-1 डायबिटीज के लक्षणों में निम्न हो सकते हैं:
- पॉलीरिया (पेशाब आने में बढ़ोतरी)
- पॉलीडिप्सिया (प्यास ज्यादा लगना)
- मुँह सूखना
- पॉलीफैगिया (भूख ज्यादा लगना)
- थकान
- वजन घटना
- मूड स्विंग्स
- डिप्रेशन (12%)
टाइप-1 डायबिटीज कैसे पहचाना जाता है?
ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन (ए 1 सी) परीक्षण – यह परीक्षण पिछले दो से तीन महीनों की औसत ब्लड शुगर के स्तर की ओर इशारा करता है और आरबीसी में ऑक्सीजन ले जाने वाली प्रोटीन से जुड़ी ब्लड शुगर का प्रतिशत मापता है। ब्लड शुगर का स्तर जितना ज्यादा होता है, उतना ही हीमोग्लोबिन चीनी से जुड़ा होता है।
रैंडम ब्लड शुगर की जांच – इस जांच में उसी समय पर खून का नमूना लिया जाता है, भले ही आपने आखिरी बार कभी भी खाया हो। 200 मि.ग्रा./ डी.एल या उससे ज्यादा की रैंडम ब्लड शुगर का स्तर होता है। इसमें लगातार पेशाब और अत्यधिक प्यास जैसे लक्षण होते हैं।
फास्टिंग ब्लड शुगर की जांच – रात भर भूखे रहने के बाद ली गई फास्टिंग ब्लड शुगर, यदि 100 मि.ग्रा./डी.एल से कम स्तर पर है तो यह सामान्य है, लेकिन यदि यह दो अलग-अलग परीक्षणों पर 125 मि.ग्रा./डी.एल हो तो यह उच्चतर स्तर है| यदि यह दो अलग-अलग परीक्षणों पर अधिक होता है, तो आपको डायबिटीज होता है।
ब्लड टेस्ट – टाइप-1 डायबिटीज में सामान्य एंटी-बॉडी की जांच के लिए फास्टिंग ब्लड शुगर की जांच की जाती है| इसकी पहचान अनिश्चित होने पर ये परीक्षण टाइप-1 और टाइप 2 डायबिटीज के बीच अंतर करने में मदद करते हैं। मूत्र में केटोन की उपस्थिति टाइप 2 के बजाय टाइप-1 डायबिटीज बताती है।
टाइप-1 डायबिटीज को कैसे रोकें और नियंत्रित करें?
टाइप-1 डायबिटीज रोकथाम के योग्य नहीं है। शोधकर्ताओं के मुताबिक कुछ उपाय इसे रोकने में मदद कर सकते हैं।
इम्यूनोस्पेप्रेसिव ड्रग्स – साइक्लोस्पोरिन-ए ने स्पष्ट रूप से बीटा कोशिकाओं के विनाश को रोक दिया है लेकिन इससे गुर्दे की विषाक्तता और अन्य दुष्प्रभाव लंबे समय तक उपयोग के लिए इसे अनुचित बनाते हैं।
आहार – शोध के अनुसार स्तनपान के बाद जीवन में इसका खतरा कम हो जाता है और आहार में ग्लूकन युक्त अनाज से आइलेट सेल ऑटो एंटी-बॉडी विकसित करने का खतरा बढ़ जाता है।
टाइप-1 डायबिटीज का उपचार – एलोपैथिक उपचार
- इसके उपचार के लिए इंसुलिन थेरेपी, कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन की गिनती, ब्लड शुगर की निगरानी, आहार में बदलाव और नियमित व्यायाम शामिल हैं।
- टाइप-1 डायबिटीज में जीवनभर के लिए इंसुलिन थेरेपी की जरूरत होती है। इंसुलिन के कई प्रकार हैं। इंसुलिन या तो इंजेक्शन या इंसुलिन पंप के द्वारा दी जाती है।
- शॉर्ट-एक्टिंग या नियमित इंसुलिन में ह्यूमुलीन-आर और नोवोलीन-आर शामिल हैं।
- रैपिड-एक्टिंग इंसुलिन में इंसुलिन ग्लुलीसाइन (एपिड्रा), इंसुलिन लिस्प्रो (ह्यूमोलॉग) और इंसुलिन एस्पार्ट (नोवोलॉ) शामिल हैं।
- लंबे समय तक चलने वाले इंसुलिन में इंसुलिन ग्लार्गिन (लान्टस, टौजेओ सोलोस्टर), इंसुलिन डिटेमिर (लेवीमिर) और इंसुलिन डिग्लुडेक (ट्रेसिबा) आदि हैं।
- इंटरमीडिएट-एक्टिंग इंसुलिन में इंसुलिन एनपीएच (नोवोलीन-एन, ह्यूमुलीन-एन) आदि है।
दवाएं
उच्च रक्तचाप की दवाएं – गुर्दे को स्वस्थ रखने में मदद करने के लिए एंजियोटेंसिन-कनवर्टिंग एंजाइम (एसीई) अवरोधक या एंजियोटेंसिन रिसेप्टर ब्लॉकर्स (एआरबी) दिए जाते हैं। ऐसे डायबिटीज वाले लोगों को लेने की सलाह दी जाती है जिनको 140/90 मि.मी एच.जी से ऊपर रक्तचाप है।
एस्पिरिन – यह दवा दिल की रक्षा के लिए दी जाती है।
कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाएं
खून की निगरानी – निरंतर ग्लूकोज मॉनिटरिंग से (सीजीएम) ब्लड शुगर के स्तर पर नज़र रखी जाती है और हाइपोग्लिसिमिया को रोकने के लिए यह विशेष रूप से सहायक हो सकती है। सीजीएम शरीर से जुड़ी हुई सुई का उपयोग करके हर कुछ मिनट में ब्लड ग्लूकोज के स्तर की जांच करता है।
टाइप-1 डायबिटीज का उपचार – होम्योपैथिक उपचार
सिजीगियम जम्बोलानम(काला बेर) – यह प्यास, कमजोरी, त्वचा के अल्सर और ज्यादा पेशाब का इलाज करने में मदद करने के लिए जाना जाता है।
यूरेनियम नाइट्रिकम – इसका उपयोग ज्यादा पेशाब आने, मतली, सूजन और पेशाब की जलन के लिए किया जाता है।
कॉनियम – इस दवा को पैर और हाथों के साथ-साथ डायबिटीज न्यूरोपैथी (तंत्रिका क्षति) के इलाज के लिए भी जाना जाता है।
प्लंबम – इसका उपयोग हाथों और पैरों, नसों के दर्द और टिनिटस में संयम करने में मदद करने के लिए किया जाता है।
कैलेंडुला – यह इन्फेक्टेड अल्सर के इलाज के लिए है।
फॉस्फोरिक एसिड – यह खराब यादाश्त, भ्रम या भारी सिर, रात में लगातार पेशाब आना, बालों का झड़ना आदि का इलाज करता है।
टाइप-1 डायबिटीज – जीवन शैली के टिप्स
- दवाएं जरूर लें और रोज़ की दिनचर्या में स्वस्थ भोजन और शारीरिक गतिविधि को हिस्सा बनाएं।
- टैग या कंगन पहनें जो बताता है कि आपको डायबिटीज है और ब्लड शुगर कम होने वाली आपात स्थिति के मामले में अपने पास ग्लूकागन किट रखें।
- टीकाकरण करवाते रहें और हर साल फ्लू शॉट लें|
- रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों में हेपेटाइटिस-बी के टीकाकरण की सलाह दी जाती है यदि पहले हेपेटाइटिस-बी के खिलाफ टीकाकरण नहीं किया गया और आप 1 या 5 वर्ष के आयु वर्ग के वयस्क हैं जिन्हें टाइप-1 या टाइप-2 डायबिटीज हैं।
- रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रण में रखें।
- धूम्रपान छोड़ दें क्योंकि इससे डायबिटीज की परेशानियों का खतरा बढ़ जाता है, जिसमें दिल का दौरा, स्ट्रोक और नसों की हानि और गुर्दे की बीमारी शामिल है।
- यदि आप पीना नहीं छोड़ सकते तो थोड़ी मात्रा में अल्कोहल पियें|
- तनाव से बचें क्योंकि लंबे समय तक तनाव के कारण शरीर में बनने वाले हार्मोन इंसुलिन को ठीक से काम करने से रोक सकते हैं जो तनाव और निराशाजनक कर सकता है।
टाइप-1 डायबिटीज वाले व्यक्ति के लिए क्या व्यायाम हैं?
20 से 30 मिनट के लिए चलने, साइकिल चलाने, तैराकी और दूसरी एरोबिक गतिविधियां, हफ्ते में 5 दिन कार्डियोवैस्कुलर एक्सरसाइज करने से स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।
टाइप-1 डायबिटीज और गर्भावस्था – जानने योग्य बातें
- टाइप-1 डायबिटीज वाली गर्भवती महिलाओं को ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने की जरूरत होती है।
- ब्लड शुगर का ऊंचा स्तर न्यूरल ट्यूब दोषों और बच्चे के दिल की जन्मजात विकृति का खतरा पैदा कर सकता है।
- गर्भावस्था में गर्भपात और जन्म दोषों का खतरा तभी बढ़ता है जब डायबिटीज नियंत्रित नहीं होता|
- मां के लिए, टाइप-1 डायबिटीज डायबिटीज केटोएसिडोसिस, डायबिटीज की आंख की समस्याओं (रेटिनोपैथी), गर्भावस्था से होने वाले उच्च रक्तचाप और प्रिक्लेम्प्शिया के खतरे को बढ़ाता है।
टाइप-1 डायबिटीज से संबंधित सामान्य परेशानियाँ
- हार्ट और ब्लड वेसल डिजीज
- तंत्रिका तन्त्र को नुक्सान (न्यूरोपैथी)
- गुर्दे को नुक्सान (नेफ्रोपैथी)
- आंखों को नुक्सान
- पैरों को नुक्सान
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