
पुराने जमाने में छोटे-छोटे ब्रुशो को अपरिष्कृत स्याही में डुबाकर लिखा करते थे | रोमन लोग अपने लिखने के ब्रश को पेन्सिल्स कहते थे उसी से पेंसिल शब्द बना है | कलहंस पंखो की कलम से लिखने का चलन यूरोप में छठी शताब्दी से शुरू हुआ था | इसके बाद पुरे सौ वर्ष गुजर गये | सोलहवी शताब्दी के मध्यकाल में एक घटना घटी |
कम्बरलैंड , इंग्लैंड में बोरोडेल के पास तूफान में एक बड़ा वृक्ष जड़ से उखड़ गया | उसकी विशाल जड़ो के नीचे काला-काला खनिज पदार्थ दिखाई देने लगा | वह काले सीसे के भंडार जैसा था | वस्तुत: वह काला सीसा ओर कुछ नही अत्यंत शुद्ध कोटि का ग्रेफाईट था | उतना उत्तम ग्रेफाईट इंग्लैंड में उससे पहले कभी नही पाया गया था |
स्थानीय चरवाहे उसका उपयोग अपनी भेड़ो पर निशान बनाने के लिए करने लगे | जल्द ही कुछ शहरियों ने यह रहस्य जान लिया | वे उसकी छोटी-छोटी सलाखे काटकर लन्दन के बाजारों में दुकानदारों और व्यापारियों को बक्सों और टोकरियो पर निशान लगाने वाले निशानिया पत्थर (Marking Stone) के नाम से बेचने लगे | उसके बाद 18वी शताब्दी में बादशाह जोर्ज द्वितीय ने बोरोडेल की खान को अपने अधिकार में ले लिया | उस पर बादशाह का एकाधिकार हो गया |
आज बनने वाली 18 सेमी लम्बी पेंसिल से 55 किमी लम्बी रेखा बना सकते है और कम से कम 50 हजार शब्द लिखे जा सकते है और घिसते घिसते पचास किमी का जरा सा टुकड़ा रह जाने तक उसे 17 बार छीला जा सकता है | आधुनिक पेंसिल के निर्माण करीब चालीस विभिन्न पदार्थो से होता है | सर्वश्रेष्ट ग्रेफाईट श्रीलंका , मेडागास्कर और मेक्सिको में पाया जाता है | सर्वश्रेष्ट खड़िया मिलती है जर्मनी में | और ग्रेफाईट एवं खडिया का मिश्रण तैयार करने वाली टबलिंग मशीनों में काम आने वाले अंडाकार चकमक पत्थर बेल्जियम तथा डेनमार्क के सागर तटो से प्राप्त होते है |
पेन्सिल के खोल का इतिहास
पेंसिलो क खोल की अधिकाँश लकड़ी केलिफोर्निया के 200 वर्ष पुराने सुगन्धित देवदारों से मिलती है | इनका रेशा सीधा होता है और रंग अक्सर पीला या बादामी होता है | अपेक्षाकृत नरम होने के कारण यह लकड़ी न सिर्फ कटाई-चिराई के लिए आदर्श मानी जाती है इसे मोम चढाने रंगने एवं छीलने के लिए भी उत्तम माना जाता है | देवदार के लट्ठों को चौकोर टुकडो में काटकर सुखा लिया जाता है इसके बाद इन्हें 5 मिमी मोटे , 70 मिमी चौड़े और 185 मिमी लम्बे हिस्सों में पीर से काटा जाता है |
इन टुकडो को रंग कर मोम चढाने के बाद पेन्सिल निर्माताओ के पास भेज दिया जाता है | अब इतना ही काम बाकी रहता है कि खांचे बनाकर उनमे ग्रेफाईट की छड़े रखकर चिपकाने के बाद अलग अलग पेंसिलो के रूप में काट दिया जाये | इस तरह 300 से अधिक किस्मो की पेंसिले तैयार की जाती है | उन्ही में वह पेन्सिल भी होती है जिससे शल्य चिकित्सक रोगी की त्वचा पर ऑपरेशन करने से पहले निशान बनाते है |
0 टिप्पणियाँ