
समन किसे कहते हैं?
जब कोई अदालती कार्यवाही किसी पीड़ित पार्टी द्वारा किसी प्रतिवादी (अभियुक्त) के खिलाफ शुरू की जाती है तो बोलचाल की भाषा में इसे “समन” भेजना कहा जाता है. इस प्रकार “समन” एक कानूनी नोटिस है, जो सिविल और आपराधिक कार्यवाही के मामले जारी किया जाता है. समन में अदालत किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होने या कोई दस्तावेज पेश करने का आदेश जारी करती है. समन एक सिविल अधिकारी द्वारा प्रतिवादी (अभियुक्त) को रजिस्टर्ड डाक की सहायता से भेजा जाता है जिसमे प्राप्त कर्ता को अपने हस्ताक्षर करने होते हैं. इस हस्ताक्षर के आधार पर ही समन भेजने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है.
वारंट किसे कहते हैं
वारंट एक कानूनी आदेश होता है जिसे जज या मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किया जाता है जिसमे पुलिस को किसी व्यक्ति को पकड़ने, उसके घर को जब्त करने, उसके घर की तलाशी लेने और अन्य जरूरी कदम उठाने के अधिकार मिल जाते हैं. यदि पुलिस अदालत से अनुमति लिए बिना किसी व्यक्ति के घर की तलाशी लेती है या उसकी संपत्ति को जब्त कर लेती है तो इस प्रकार के काम को उस व्यक्ति में मूल अधिकारों का उल्लंघन माना जाता है. इसलिये वारंट जारी करने का अधिकार कोर्ट के पास ही होता है.
एक वारंट लिखित रूप में निर्धारित प्रारूप में जारी किया जाता है. इसके ऊपर जारी करने वाले की मुहर, नाम और पद का नाम दिया होने के साथ साथ जिस व्यक्ति के लिए जारी किया जाता है और जिस अपराध के लिए जारी किया जाता है, सबका नाम दिया गया होता है.
समन और वारंट में क्या अंतर होता है?
1. “समन” एक कानूनी आदेश है जिसे न्यायिक अधिकारी द्वारा प्रतिवादी (अभियुक्त) के लिए जारी किया जाता है जबकि “वारंट” कोर्ट द्वारा पुलिस अधिकारी को जारी किया जाता है.
2. “समन” में व्यक्ति को कोर्ट में स्वयं हाजिर होने या दस्तावेज पेश करने का आदेश दिया जाता है जबकि “वारंट” में कोर्ट पुलिस को आदेश देती है कि वह प्रतिवादी (अभियुक्त) को कोर्ट के सामने पेश करे.
3.“समन” में प्रतिवादी (अभियुक्त) को संबोधित किया जाता है जबकि “वारंट” में पुलिस अधिकारी को संबोधित किया जाता है.
4.“समन” का उद्येश्य अदालत में पेश होने के लिए व्यक्ति के कानूनी दायित्व के बारे में व्यक्ति को सूचित करना है जबकि “वारंट” का मतलब उस व्यक्ति को कोर्ट में लाना होता है जिसने समन को अनदेखा कर दिया है और कोर्ट में हाजिर नही हुआ है.
5.“समन” के पालन करने की जिम्मेदारी प्रतिवादी (अभियुक्त) की होती है जबकि वारंट का पालन करवाने का काम पुलिस का होता है.
निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि किसी भी अपराधी या अभियुक्त को अदालत द्वारा पहले "समन" भेजा जाता है कि उसे किसी निश्चित तारीख या समय पर अदालत के समक्ष उपस्थित होना है लेकिन यदि वह व्यक्ति कोर्ट के आदेश को अनसुना कर देता है तो फिर उसके खिलाफ “वारंट” जारी किया जाता है जिसके पालन की जिम्मेदारी किसी पुलिस अफसर को दी जाती है और पुलिस अभियुक्त को पकड़ने के लिए उसके घर, दुकान और ऑफिस इत्यादि पर छापे डालती है और यदि जरूरी हुआ तो कुर्की या संपत्ति जब्त जैसे कार्य भी पुलिस द्वारा किये जाते हैं.
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