महामारी से बचाने वाली वैक्सीन को बनाने की प्रक्रिया है दर्दनाक जानिए कैसे तैयार हो रही कोरोना की वैक्सीन

                            Medication Found To Treat Coronavirus! Thailand Government Claims ...                  
वैक्सीन प्रयोगशाला से बाजार तक 
कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण से भारत समेत पूरी दुनिया के लोग परेशान हैं। इस घातक वायरस के सामने कई शक्तिशाली देशों ने भी घुटने टेक दिए हैं। इस वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए पूरे भारत में लॉकडाउन की व्यवस्था लागू की गई है। ऐसे में अगर किसी चीज का बेसब्री से इंतजार है तो वह है कोरोना वायरस की वैक्सीन। हालांकि कोरोना के वैक्सीन को लेकर पूरी दुनिया में रिसर्च का दौर चल रहा है। दुनियाभर के हजारों वैज्ञानिक इस खतरनाक वायरस से निपटने के लिए वैक्सीन बनाने में दिन-रात लगे हुए हैं।

आमतौर पर किसी भी तरह के वैक्सीन को बनाने में दो से पांच साल का समय लग जाता है। इसके बाद उस वैक्सीन के इस्तेमाल से लेकर उसकी प्रमाणिकता मिलने की एक मजबूत प्रक्रिया होती है। ऐसे में आज हम आपको इस लेख में प्रयोगशाला से बाजार तक का वैक्सीन के सफर के बारे में बताएंगे। तो आइए जानते हैं कैसे कोई वैक्सीन इलाज के लिए मरीज तक पहुंचती है।

वैक्सीन की कहानी 

  • वैक्सीन के द्वारा शरीर में किसी भी रोग विशेष से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है।
  • वैक्सीन शरीर को किसी भी रोग से लड़ने के लिए तैयार करती है, इम्युनिटी सिस्टम को मजबूत करती है।
  • आपके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है और रोगों से लड़ने में आपकी मदद करती है।
  • वैक्सीन शरीर में उत्पन्न होने वाले सूक्ष्म जीवों को बढ़ने से रोकने में सहायता प्रदान करती है।
  • वैक्सीन आपके शरीर में उपस्थित बैक्टीरिया को पहचान कर उनको नष्ट करने में मदद करती है और शरीर में एंटीबॉडीज का निर्माण करती है।
  • जब आपके शरीर को कोई रोग आपके शरीर को नुकसान पहुंचता है तब आपके शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र इनसे लड़ने के लिए कोशिकाओं का निर्माण करता है लेकिन जब शरीर कमजोर हो जाता है यानी प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर पड़ता है तब वैक्सीन यह काम करती है।
  • वैक्सीन की मदद से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और यह इसको ही बढ़ाने का कार्य करती है।
कौन देता है इसकी इजाजत 

इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन हार्मोनाइजेशन – ICH यानी एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, जिसका संयुक्त नेतृत्व अमेरिका, यूरोप और जापान ने किया जिसमें क्लीनिकल ट्रायल रिसर्च के लिए एक तीन देशों ने कुछ दिशा निर्देशों को निर्धारित किया है। अब क्लीनिकल ट्रायल रिसर्च के लिए इन्हीं निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन किया जाता है। इसे ही ICH-GCP कहा जाता है।

कैसे बनती है वैक्सीन 
  • क्लीनिकल ट्रायल एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें चिकित्सा की प्रक्रियाओं और दवाओं की सुरक्षा की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए अनुसंधान अध्ययन किया जाता है। किसी भी चिकित्सा उपकरण या फिर नवीन प्रक्रिया के लिए क्लीनिकल ट्रायल किया जाता है। इसका उद्देश्य है-
  • क्लीनिकल ट्रायल के माध्यम से रोगियों की मदद
  • इलाज के लिए नए और बेहतर तरीके खोजना
  • अधिक प्रभावी और बेहतर उपचार स्थापित करने का भाव
  • नए प्रयोग की खोज जिससे अधिक सहायता मिले
  • नवीन अनुसंधान में मदद, बीमारियों का समाधान ढूंढने के लिए किया जाता है।
वैक्सीन की प्रक्रिया और इससे जुडी कुछ खास बाते 
क्लीनिकल ट्रायल के मुख्यतः चार चरण होते हैं-
  • क्लीनिकल ट्रायल परीक्षण चार चरणों में संपादित किया जाता है।
  • इन चार चरणों में अलग अलग तरह के चिकित्सीय परीक्षण किए जाते हैं।
  • क्लीनिकल ट्रायल परीक्षण की पूरी प्रक्रिया में कई वर्ष लग सकते हैं।
  • अगर किसी वजह से प्रक्रिया को इमरजेंसी स्थिति में तेजी से भी किया जाए तो करीब एक से डेढ़ साल तक लग जाते हैं। बंदर, चूहा इत्यादि जानवरों पर परीक्षण हो चुका हो इसके बावजूद इतना समय लग जाता है।
जानिए वैक्सीन से जुड़े सभी सवालो के जवाब 
प्रथम चरण क्लीनिकल ट्रायल में दवाओं की सुरक्षा और मात्रा की सहनशीलता के आकलन के लिए ट्रायल किया जाता है।
  • इसमें वॉलिंटियर्स की संख्या 20 से 100 तक होती है।
द्वितीय चरण का क्लीनिकल ट्रायल वॉलिंटियर्स के बड़े समूहों पर किया जाता है।
  • इस चरण में दवा की प्रभावकारिता और विषाक्तता, उपचार में दवा की आवश्यक मात्रा का आकलन किया जाता है।
  • द्वितीय चरण में क्लीनिकल ट्रायल को पूरा होने में कई साल लग सकते हैं।
तीसरे चरण में क्लीनिकल ट्रायल में दवा की प्रभावकारिता और दुष्प्रभाव को ध्यानपूर्वक देखा जाता है।
  • इसमें परीक्षण केंद्रों पर 300 से 3000 लक्षित पीड़ित रोगियों के समूहों पर लंबे समय तक यानी दो से पांच साल तक अनुसंधान किया जाता है।
  • तीसरे चरण में क्लीनिकल ट्रायल में दवा का प्रभाव उत्पादकता और दवाओं की मात्रा का परीक्षण किया जाता है।
चौथा चरण में अनुसंधान में लोगों के एक बड़े समूह पर ज्यादा समय अवधि तक दवाओं के दीर्घकालिक उपयोग और उसके प्रभाव की जांच की जाती है।
  • चौथा चरण का अध्ययन लगातार नई दवाओं विपणन( मार्केटिंग) के बारे में अधिक जानकारी खोजने के लिए के लक्ष्य से किया जाता है।
  • इसमें क्लीनिकल ट्रायल में रोगी पर्यवेक्षण के अधीन रहते हैं।
  • यह ट्रायल चिकित्सक के कार्यालय में ही किया जाता है।
  • जहां पर रोगी को पूर्णता चिकित्सा देखभाल प्राप्त होती है।
यह चतुर्थ चरण बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि-
  • इस चरण में क्लीनिकल ट्रायल के अध्ययन के बाद दवा की आगे की रूपरेखा तय होती है।
  • इससे होने वाले लाभ पर अध्ययन होता है।
  • दवा के जोखिम और इससे जुड़ी अधिक जानकारी सर्च करने के बाद इसको FDA (Food and Drug Administration) द्वारा दवा निर्माता कंपनी को दवा की बिक्री की मंजूरी दी जाती है, और यह बहुत जरूरी प्रक्रिया होती है।
वैक्सीन प्रक्रिया के तीन चरण होते है 
वैक्सीन के सर्टिफिकेशन के लिए बहुत चरणों में टेस्ट किया जाता है। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के मुताबिक ये छह चरण एक्सप्लोरेट्री, प्री-क्लीनिकल, क्लीनिकल डेवलपमेंट और इसके बाद के तीन चरण में मानव पर वैक्सीन का परीक्षण किया जाता है।

वैक्सीन प्रक्रिया के प्रमुख चरण हैं-
  • पहला - वायरस या बैक्टीरिया के विरुद्ध लड़ने वाले एंटी-डोज का निर्माण करना।(Exploratory stage)
  • दूसरा - वैक्सीन का जानवरों पर परीक्षण।(Pre-clinical stage)
  • तीसरा - मानव पर परीक्षण यानी क्लीनिकल ट्रायल।(Clinical development)
  • चौथा - प्रमाणिकता।(Regulatory review and approval)
  • पांचवा - निर्माण।(Manufacturing)
  • छठा - गुणवत्ता (Quality control)
कोरोना वायरस और वैक्सीन
कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर काफी तेजी से काम चल रहा है, पूरी दुनिया में कोवि़ड -19 की वैक्सीन को लेकर तेजी से रिसर्च चल रही है।
कोरोना की वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल के चरण से गुजर रही है, जिसका परीक्षण अमेरिका में मॉडर्न थैरेप्यूटिक्स की देखरेख में हो रहा है। कोरोना की वैक्सीन के शोध में दुनियाभर के बड़े संस्थान और शोधकर्ता लगे है।
कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में उतना समय जरूर लगेगा, जितना इसकी प्रक्रिया के लिए बेहद जरूरी है।

जानिए क्या है सस्थागत एथिक कमेटी 
  • एथिक (IEC) समिति निष्पक्ष, सक्षम और बहुआयामी होनी चाहिए।  
  • एथिक समिति में कम से कम 5-7 सदस्य अवश्य रखे जाने चाहिए।
  • न्यूनतम पांच व्यक्ति तो जरूर होने चाहिए।
  • अधिकतम 12-15 सदस्य संख्या हो सकती है।
  • इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि, एथिक समिति का सचिव उसी संस्थान से जुड़ा नहीं होना चाहिए, जहां पर वो ट्रायल किया जा रहा है।
  • सदस्यों में उम्र, लिंग, समुदाय, का पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए, और निष्पक्षता का मुख्य ध्यान रखा जाना चाहिए।  
एथिक समिति की संरचना इस प्रकार है 
  • अध्यक्ष
  • एक या दो मौलिक चिकित्सा वैज्ञानिक (प्राथमिक रूप से एक फारमेकॉलोजिस्ट)
  • किसी अन्य संस्थान से एक या दो चिकित्सक
  • एक कानूनी विशेषज्ञ या सेवानिवृत्त न्यायाधीश
  • एक गैर सरकारी सामाजिक एजेंसी / वैज्ञानिक प्रतिनिधि
  • एक दार्शनिक / एथिस्ट/ थियोलोजिस्ट
  • समाज से एक सामान्य व्यक्ति
  • सदस्य सचिव
भारत में क्लीनिकल ट्रायल के लिए नियम 
  • भारत में किसी भी प्रकार के क्लीनिकल रिसर्च की मंजूरी ड्रग्स महानियंत्रक (DCGI) देता है और इसके लिए जिम्मेदार होता है।
  • DCGI की मंजूरी के बिना भारत में किसी प्रकार का क्लीनिकल ट्रायल नहीं किया जा सकता है।
  • अगर समय सीमा की बात की जाए तो भारत में इस तरह की मंजूरी के लिए 3 महीने लगते हैं।
  • औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम की अनुसूची Y में 2005 में संशोधन किया गया है, जिसके अनुसार पहले विदेशी ट्रायल्स के नीचे के एक चरण ही भारत में किए जा सकते थे। मगर अब वैश्विक क्लीनिकल ट्रायल समानांतर रूप से भारत में भी किया जाना संभव है।
वैक्सीन की प्रकिया और इससे जुडी कुछ खास बाते 
  • क्लीनिकल ट्रायल में भाग लेने के लिए अध्ययन विषय का चयन।
  • रोगी के अधिकारों की पूरी सुरक्षा की जाती है, और उसको सर्वोपरि रखा जाता है।
  • जांच पड़ताल और दवा का विशेष ख्याल रखा जाता है।
  • रोगी की मुफ्त चिकित्सा देखभाल की जाती है।
  • सबसे महत्वपूर्ण है स्वेच्छा से और एक सूचित सहमति पर हस्ताक्षर करने के बाद ही ट्रायल प्रारम्भ किया जाता है।
  • ट्रायल में भाग लेने के बाद भी ये जरुरी नहीं कि ट्रायल जारी रखने के लिए कोई भी बंधन हो।
  • किसी भी समय रोगी अपनी सहमति को वापस ले सकता है।
भारत देश में सील-क्लीनिकल ट्रायल को मजूरी देने के लिए शीर्षस्थ नियामक संस्थान इस प्रकार हैं

भारत देश में क्लीनिकल ट्रायल की देखरेख और उसको मंजूरी देने के लिए कुछ शीर्षस्थ नियामक संस्थान होते है, जिनकी अनुमति के बिना क्लीनिकल ट्रायल संभव नहीं हो पाते हैं। वह शीर्षस्थ नियामक संस्थान इस प्रकार हैं-
  • DCGI – ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (औषधि नियंत्रक)
इस संस्था के माध्यम से भारत सरकार द्वारा सभी क्लीनिकल ट्रायल का अपनी देखरेख में नियंत्रण किया जाता है।
  • ICMR – (भारतीय मेडिकल रिसर्च परिषद)
यह एक सर्वोच्च संस्था है, इसका कार्य सभी जैव चिकित्सा और अनुसंधान को समन्वय कराती है।
  • GEAC – (जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी)
यह अनुमोदन संस्थान की तरह कार्य करती है। यह अनुमोदन समिति जेनेटिक इंजीनियरिंग, जीव विज्ञान, क्लीनिकल जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों के इस्तेमाल और आणविक के क्षेत्र में क्लीनिकल ट्रायल का अनुमोदन करती है।
GEAC, DCGI द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों पर अपना कार्य करती है।
  • DBT विभाग – (जैव प्रौद्योगिकी विभाग)
भारत में जीव विज्ञान जैव प्रौद्योगिकी विकास के लिए यह आधुनिक क्षेत्र की नई प्रेरणा की देखरेख करता है।
  • AERB – (परमाणु ऊर्जा समीक्षा बोर्ड)
इस प्राधिकरण का कार्य नवीन प्रकार के विकिरण उपकरण, निरीक्षण और अनुमोदन विनियामक नियंत्रण, प्रतिष्ठानों के लिए विकिरण उपकरणों के पंजीकरण का कार्य करना होता है।
  • BARC – (भाभा एटॉमिक अनुसंधान केंद्र)
यह सर्वोच्च संस्थान है, जो भारत में सभी विकिरण से संबंधित परियोजनाओं की मंजूरी देता है और उनकी देखरेख करता है।
  • DCGI -
जितने भी क्लीनिकल ट्रायल्स होते है, उनमें रेडियो फार्मेस्युटिकल के लिए भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की विशेषज्ञ राय लेता है।
  • DCC – (औषध परामर्शदाता समिति)
इसका कार्य केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करता है।
  • CDL – (केंद्रीय औषध प्रयोगशाला)
यह भारत सरकार की राष्ट्रीय गुणवत्ता सांविधिक प्रयोगशाला है, जो दवाओं के नियंत्रण के लिए कार्य करता है।
  • CLAA – (सेंट्रल लाइसेंस प्राधिकरण)
  • CDSCO के अंतर्गत दवाओं के विनिर्माण लाइसेंस के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया जाता है।
  • DTAB – (ड्रग्स तकनीकी सलाहकार बोर्ड)
  • यह CDSCO को तकनीकी मार्गदर्शन देने का कार्य करता है।
लिखित सूचित सहमति क्या है 
  • जब भी किसी रोगी को क्लीनिकल रिसर्च अध्ययन में भर्ती किया जाता है।
  • सबसे पहले उसके हितों की रक्षा के लिए एक लिखित सूचित सहमति आवश्यक ली जाती है।
  • GCP दिशा-निर्देश के अनुसार, लिखित सूचित सहमति जरुरी है और प्रक्रिया के कार्यान्वयन के लिए सूचित प्रलेखन की जरूरत पर अत्यधिक जोर दिया गया है।
  • इसके अंतर्गत रोगी या रोगी के प्रतिनिधि द्वारा एक लिखित सूचित सहमति अनुबंध किया जाता है।
  • इसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि, वह अनुसंधान में भाग लेने के लिए तैयार हैं।
  • इस सहमति को लेते हुए रोगी को या उसके प्रतिनिधि को उसकी सहजता और उसकी भाषा में समझा कर ली जाती है।
  • जब यह सहमति मिलती है उसके बाद ही अध्ययन शुरू किया जा सकता है।
  • इस अनुमति से पहले उसको सबकुछ बताया जाता है जैसे संभावित जोखिम, किस प्रक्रिया से गुजरना होगा इत्यादि।  
  • GCP दिशानिर्देशों के अनुसार जांचकर्ता और क्लीनिकल रिसर्च स्थल पर अध्ययन दल के सदस्यों द्वारा अध्ययन प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन करना और अध्ययन में प्रतिभागियों के अधिकारों की पूर्णरूप से रक्षा करना शामिल है।   
शोध रोगी के अधिकार 
क्लीनिकल अध्ययन में भागीदारी के लिए  एक शोध अध्ययन के रोगी को कुछ अधिकार प्रदान किए गए है
  • रोगी अपने अधिकार पर विचार कर सकता है, और उसकी पूर्ण सहमति के बिना उसके साथ यह ट्रायल नहीं हो सकता है।
  • क्लीनिकल ट्रायल की अवधि शुरू होने से पहले रोगी उससे परिचित होना चाहिए।
  • अपने नामांकन से पहले रोगी संभावित परीक्षण जोखिम, बीमा के बारे में सारी जानकारी ले सकता है।
  • रोगी का यह अधिकार है की वह अध्ययन की योजना क्या है, यह कब तक पूरा होगा, यह जहां किया जाएगा उसका पता आदि पूरी जानकारी ले सकता है।
  • रोगी ट्रायल के बारे में किसी भी प्रकार की शंका, प्रश्न या चिंता की जानकारी ले सकता है।
  • वह इससे जुड़ा कोई भी सवाल कर सकता है।
  • रोगी को किसी भी समय उसके ऊपर अध्ययन की जा रही दवा के विषय पर सवाल पूछने का अधिकार है।
  • सबसे महत्वपूर्ण बात रोगी की सूचना को गोपनीय रखा जाता है।
  • परीक्षण में नामांकन के बाद भी रोगी पूरी तरह स्वैच्छिक होता है।  
  • रोगी का यह अधिकार होता है कि अध्ययन के दौरान किसी भी समय वह इसे छोड़ सकता है।
  • किसी भी तरह की मजबूरी या पूर्वाग्रह में यह स्वीकृति नहीं दी जाएगी।
Bibliography and References- 

Vaccines
https://www.who.int/topics/vaccines/en/  

Vaccine Testing and the Approval Process
https://www.cdc.gov/vaccines/basics/test-approve.html  

Update on WHO Solidarity Trial – Accelerating a safe and effective COVID-19 vaccine
https://www.who.int/emergencies/diseases/novel-coronavirus-2019/global-research-on-novel-coronavirus-2019-ncov/solidarity-trial-accelerating-a-safe-and-effective-covid-19-vaccine  

Coronavirus vaccine: when will we have one?
https://www.theguardian.com/world/2020/apr/19/coronavirus-vaccine-when-will-we-have-one  

When will a COVID-19 vaccine be ready?
https://www.thehindu.com/sci-tech/health/when-will-a-covid-19-vaccine-be-ready/article31131211.ece  

Special Report: Countries, Companies Risk Billions in Race for Coronavirus Vaccine
https://www.nytimes.com/reuters/2020/04/25/business/25reuters-health-coronavirus-vaccine-specialreport.html World 

leaders launch plan to speed COVID-19 drugs, vaccine; U.S. stays away
https://in.reuters.com/article/health-coronavirus-who/world-leaders-due-to-launch-covid-19-drugs-vaccine-plan-who-idINKCN2261M3 

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