ट्रेन में जनरल डिब्बे सबसे आखिरी में ही क्यों होते हैं, बीच में क्यों नहीं… ये रहा इसका जवाब!

 

आपने भी ट्रेन में कई बार यात्रा की होगी और आपने यह नोटिस किया होगा कि रेलवे में सिस्टम से काम होता है. ट्रेन में सफाई से लेकर ट्रेनों के संचालन तक एक सिस्टम बना हुआ है और उस सिस्टम के जरिए लोगों को सुविधाएं दी जा रही हैं. आपने यह भी देखा होगा कि हर ट्रेन का स्ट्रक्चर भी करीब एक जैसा ही होता है, यानी पहले इंजन और उसके बाद जनरल डिब्बे और फिर एसी, स्लीपर आदि डिब्बे होते हैं. लेकिन, कभी आपने सोचा है कि आखिर हर ट्रेन में जनरल डिब्बे सबसे आखिरी में ही क्यों होते हैं, इन्हें बीच में क्यों नहीं बनाया जाता…

अगर आपके मन में भी यह सवाल कभी आया है तो आज हम आपको इसका जवाब बता रहे हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है. दरअसल, हर ट्रेन के आखिरी और शुरू में जनरल डिब्बे होते हैं और यह हर ट्रेन में सबसे आखिरी में ही होते हैं. इसकी पीछे की वजह भी काफी अहम है और हाल ही में एक रेलवे अधिकारी ने ट्विटर पर इसका कारण बताया है कि आखिर क्यों जनरल डिब्बे सबसे आखिरी में होते हैं…

दरअसल, हाल ही में एक शख्स ने ट्वीट करके पूछा था कि 24 डब्बों की ट्रेन में सिर्फ दो ही डिब्बे जनरल के आगे और पीछे क्यों लगाए जाते हैं? हालांकि, उन्होंने अलग अंदाज में यह सवाल किया था और उन्होंने आरोप लगाया था कि दुर्घटना की स्थिति में जनरल डिब्बे के गरीब लोग ही सबसे पहले मर जाएंगे. अब इस सवाल पर रेलवे के एक अधिकारी ने जवाब दिया है, हालांकि उन्होंने एक्सीडेंट वाली बात को गलत ठहराया है और कमेंट को गलत कहा है.

रेलवे अधिकारी ने दी जानकारी

रेलवे के अधिकारी की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, रेल के डिब्बों में ऐसा यात्रियों की सुविधाओं के लिए किया जाता है. उन्होंने तर्क दिया कि जनरल डिब्बों में भीड़ ज्यादा होती है और मान लीजिए कि अगर जनरल डिब्बे बीच में होंगे तो इससे पूरी व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी. साथ ही इससे बोर्ड-डीबोर्ड की कोशिश में जाम कर देगा, इससे दोनों दिशा में में नहीं जा पाएंगे. इससे पता चलता है जनरल डिब्बों को यात्रियों की सुविधा के लिए दोनों कोनों में लगाया जाता है.


साथ ही इससे जनरल डिब्बों में बैठने वाली भीड़ लंबे डिस्टेंस के साथ दोनों जगह में बंट जाती है. ऐसे में आपात स्थिति में लोगों को बचाने, ट्रेन से बाहर निकालने और स्थिति को कंट्रोल करने के लिए यह सबसे सही मैनेजमेंट है. वैसे देखा जाए तो जनरल डिब्बों के दोनों कोनों में होने की कई वजह हैं और कई मायनों में यह व्यवस्था कारगर साबित होता है.

क्या है नीले और लाल रंग के कोच का मतलब?

ट्रेन के इंजन के साथ लगने वाले नीले कोच को इंटीग्रल कोच कहते हैं. वहीं, लाल रंग वाले कोच को LHB कहते हैं. नीले रंग के कोच में एयर ब्रेक का प्रयोग होता है. इसकी अधिकतम गति 120 किमी प्रति घंटा होती है. बैठने के लिए इसमें, स्लीपर में 72 और थर्ड एसी में 64 सीट होते हैं. वहीं, लाल रंग के कोच को लिंक हॉफमेन बुश (एलएचबी) कोच कहा जाता है. इसकी फैक्ट्री कपूरथला, पंजाब में स्थित है और ये कोच जर्मनी से भारत लाए गए हैं. पहले LHB कोच का प्रयोग सिर्फ गतिमान एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस और राजधानी एक्सप्रेस जैसी तेज गति से चलने वाली ट्रेनों में किया जाता था.

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