बीते कुछ दिनों में आकाशीय बिजली काफी चर्चा में है. असल में इसके कारम देश के विभिन्न हिस्सों में कई जानें गईं. वैसे बारिश के दिनों में बिजली गिरना (lightning strike) आम प्राकृतिक घटना है. इसे लेकर ये बात भी होने लगी है कि कोई ऐसा सिस्टम बनाया जाए, जिससे आसमानी बिजली लोगों पर कहर ढाने की बजाए इलेक्ट्रिसिटी में बदलकर बिजली आपूर्ति कर सके. हालांकि बिजली को ऊर्जा में बदलने में कई प्रैक्टिकल मुश्किलें हैं. सांकेतिक फोटो (pixabay)
अस्सी के दशक से आसमानी बिजली से एनर्जी बनाने की कोशिश हो रही है. बिजली की एक किरण में ही भारी ऊर्जा होती है, जो न्यू मैक्सिको के एक औसत आकार वाले शहर Santa Fe को एक मिनट के लिए पूरी तरह से प्रकाशित कर सकती है. लेकिन सुनने में बिजली से एनर्जी बनाना जितना आसान लगता है, असल में ये प्रक्रिया उतनी ही मुश्किल है. सांकेतिक फोटो
पहले कहा गया था कि बिजली की ऊर्जा को किसी तरह से हाइड्रोजन में बदला जा सके तो प्रक्रिया आसान हो जाएगी. या फिर इंडक्टर की तरह ऐसे उपकरण का इस्तेमाल हो जो दूर से ही बिजली की ऊर्जा को एक जगह जमा कर सके. या फिर बहुत सी बिजलियों की ऊर्जा को एक जगह जमा किया जा सके और बाद में उसे मेकेनिकल ऊर्जा में बदला जाए. इस तरह के कई प्रस्ताव आए और प्रयोग भी हुए लेकिन ये फेल होते गए.
सबसे बड़ूी समस्या है बिजली की ऊर्जा. ये इसकी क्षमता 300 किलोवाट तक हो सकती है, जो कई बार मिली सेकंड तक के लिए ठहरती है. इतनी शक्तिशाली बिजली को किसी एक जगह एकत्र कर पाना लगभग नामुमकिन हो रहा है. फिलहाल तैयार कोई भी बैटरी इतनी ऊर्जा को नहीं सह सकती. वो धीरे-धीरे चार्ज होती है और इतनी ऊर्जा डालने पर भयानक हादसा हो सकता है.
लगातार प्रयोगों के बीच साल 2007 में अल्टरनेट एनर्जी होल्डिंग्स इंक (AEHI) नाम की एक कंपनी ने एक प्रयोग किया. मेथड में एक टावर और एक केपासिटर (जिसमें ऊर्जा को संचित किया जा सके) जैसी कई चीजें इस्तेमाल की गईं. हालांकि ये प्रयोग भी नाकामयाब रहा. कंपनी अब कह रही है कि ज्यादा समय और फंडिंग से शायद ये संभव हो सके.
बिजली वैसे तो अपने-आप में काफी शक्तिशाली होती है लेकिन जमीन पर पहुंचते तक उसकी ऊर्जा काफी कम हो जाती है, ये भी एक समस्या है. इस बारे में लाइटनिंग रिसर्च लैबोरेटरी के को-डायरेक्टर मार्टिन एक उमान ने न्यूयॉर्क टाइम्स के एक इंटरव्यू में विस्तार से बात की थी. मार्टिन के मुताबिक, वैसे तो एक बिजली में एक एटम बम जितनी ताकत होती है लेकिन इससे ऊर्जा बनाने की योजना लगभग बेकार है क्योंकि एक बार इतनी ऊर्जा को जमा नहीं किया जा सकता और जब तक ये धरती पर पहुंचती है, कमजोर हो चुकी होती है.
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