लखनऊ :- गूगल भी नहीं बता पाएगा राज की बात! यहां देखिए गोमती नगर में 'V' से ही क्यों हैं सभी खंडों के नाम

क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी टाउनशिप गोमती नगर के सभी खंडों के नाम अंग्रेज़ी के ‘वी’ अक्षर से ही क्यों शुरू होते हैं? आज आपको बताते हैं इसके पीछे की दिलचस्प कहानी. अगर आप उत्तर प्रदेश की राजधानी में गोमती नदी के किनारे बसी इस रिहाइश के हिस्सों के नामों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि विजय, विश्वास, विकास और विराम जैसे दर्जन भर जैसे शब्दों पर खंडों के नाम रखे गए हैं. ऐसा क्यों और कैसे हुआ? इस सवाल के जवाब की खोज हमें करीब 40 साल पुराने एक घटनाक्रम तक ले गई.

दरअसल 1983 में लखनऊ विकास प्राधिकरण के तत्कालीन वीसी अखंड प्रताप सिंह समेत सभी अधिकारियों के सामने बड़ी चुनौती थी, गोमती नगर को टाउनशिप के तौर पर बसाना. लखनऊ विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने बताया चूंकि अवैध रूप से कई लोग और किसान रह रहे थे, ऐसे में उनको यहां से किसी और जगह भेजना टेढ़ी खीर था. करीब 6 महीने की मशक्कत के बाद प्राधिकरण को इस मोर्च पर जीत मिली. इसके बाद अधिकारियों ने विचार किया कि गोमती नगर का जो खंड पहला बनाया जाएगा, उसका नाम क्या हो! तय हुआ कि बड़ी चुनौती पर विजय मिली है, तो क्यों न पहले खंड का नाम ‘विजय खंड’ रखा जाए. बाकी खंडों के नाम एक नज़र देखें.

विजय खंड,विश्वास खंड,विशाल खंड,विवेक खंड,विराम खंड,विकास खंड,विनय खंड,विराट खंड,विराज खंड,विभव खंड,विशेष खंड,व्योम खंड,विकल्प खंड,विपिन खंड,विजयंत खंड,वास्तु खंड,विनीत खंड

इनके अलावा भी जितने खंड हैं, सबका नाम “V” से ही है. तो पहले खंड याी विजय खंड को बसाने के बाद दूसरा विश्वास खंड और फिर विवेक खंड बनाया गया. गोमती नगर के फेस वन का अंतिम खंड ‘विराम खंड’ है यानी यहां इस बसाहट को विराम दे दिया गया था. इसके बाद जिज्ञासा यह है कि सभी खंडों का नाम वी से क्यों रखा गया?

अपने आप एक परंपरा सी बन गई!

चूंकि इन नामों में एक पैटर्न साफ दिखा, तो असर यह हुआ कि आने वाले जो भी वीसी रहे, उन सबने इसी पैटर्न को कायम रखा और धीमे-धीमे हर खंड का नाम ‘वी’ से ही खोज कर रखा गया. लखनऊ विकास प्राधिकरण के सचिव आईएएस पवन कुमार गंगवार ने 1983 वाली कहानी की पुष्टि करते हुए कहा कि विजय खंड के बाद जिस तरह खंडों के नाम पड़े, कुछ ही नामों के बाद एक परंपरा सी बन गई. जैसे-जैसे अधिकारी गोमतीनगर विकसित करते गए, वैसे-वैसे सभी का नाम चाहे-अनचाहे एक ही अक्षर से रखा जाने लगा.

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