राजा सहस्त्रबाहु का जीवन परिचय और रावण का युद्ध

 

त्रेता युग में रावण से भी एक शक्तिशाली राजा था जिसका नाम था सहस्त्रबाहु (Sahastrabahu Raja Ki Kahani)। उसकी राजधानी महिष्मति नगरी थी जो नर्मदा नदी के तट पर बसी थी। वर्तमान में यह स्थान मध्य प्रदेश राज्य के नर्मदा नदी के पास महेश्वर नगर हैं जहाँ सहस्त्रबाहु को समर्पित मंदिर भी स्थित (Sahastrabahu Ka Jivan Parichay) है।

अपने समय में सहस्त्रबहु अत्यधिक शक्तिशाली तथा पराक्रमी राजा (Sahastrabahu Kaun Tha) था जिसनें तीनों लोकों के राजा रावण को भी पराजित कर दिया था और उसे अपने कारावास में बंदी बनाकर रखा था किंतु भगवान परशुराम के द्वारा उसका अपने समूचे कुल समेत नाश भी हो गया था। आज हम सहस्त्रबाहु के जीवन के बारे में जानेंगे।

सहस्त्रबाहु का जीवन परिचय (Raja Sahastrabahu In Hindi)

सहस्त्रबाहु का जन्म (Sahastrabahu Arjun Kaun The)

सहस्त्रबाहु राजा कृतवीर्य के पुत्र थे जो हैहय वंश के राजा थे। उनका वास्तविक नाम अर्जुन था किंतु समय के साथ-साथ उनके कई नाम पड़े। अपने पिता के बाद सहस्त्रबाहु महिष्मति नगरी के परम प्रतापी राजा (Sahastrabahu Kaha Ka Raja Tha) बने। राजा बनने के पश्चात उनका पृथ्वी के कई महान योद्धाओं से युद्ध हुआ था लेकिन उनकी एक गलती उनके संपूर्ण वंश के नाश का कारण बनी थी।

राजा सहस्त्रबाहु के नाम (Sahastrabahu Meaning In Hindi)

चूँकि हमनें आपको बताया कि उनके बचपन का तथा वास्तविक नाम अर्जुन था लेकिन इसी के साथ उन्हें कई अन्य नामों से भी बुलाया जाता था। आइये जानते हैं उनके विभिन्न नाम व उनका अर्थ।

  • कार्तवीर्य अर्जुन: यह नाम उन्हें अपने पिता के कारण मिला। उनके पिता का नाम कृतवीर्य था जिससे उन्हें कार्तवीर्य बुलाया जाने लगा।
  • सहस्त्रबाहु/ सहस्त्रार्जुन/ सहस्त्रार्जुन कार्तवीर्य: सहस्त्र का अर्थ होता है एक हज़ार तथा बाहु का अर्थ होता है भुजाएं अर्थात जिसकी एक हज़ार भुजाएं हो। सहस्त्रार्जुन को अपन गुरु दत्तात्रेय के द्वारा मिले वरदान स्वरुप एक हज़ार भुजाएं मिली थी जिसके बाद उन्हें सहस्त्रबाहु/ सहस्त्रार्जुन के नाम से जाना जाने लगा।
  • हैहय वंशाधिपति: सहस्त्रार्जुन अपने हैहय वर्ष में सबसे प्रतापी राजा था। इसलिये उसे हैहय वंश का प्रमुख अधिपति भी कहा गया।
  • माहिष्मती नरेश: महिष्मति नगरी के प्रमुख राजा होने के कारण उन्हें इस नाम से जाना जाता है।
  • दशग्रीवजयी: लंका के दस मुख वाले राजा रावण के ऊपर विजय प्राप्त करने के कारण उन्हें इस नाम की उपाधि मिली थी।
  • सप्त द्विपेश्वर: सातों दीपों पर राज करने के कारण कार्तवीर्य को इस नाम से भी जाना गया।
  • राज राजेश्वर: राजाओं के भी राजा होने के कारण उन्हें इस नाम से पहचान मिली। इसी नाम से उनका मंदिर भी वहां स्थित है।

सहस्त्रार्जुन का रावण से युद्ध (Sahastrabahu Ravan Ki Ladai)

एक बार रावण विश्व विजय के अभियान से महिष्मति नगरी आया था तथा नर्मदा नदी के तट पर भगवान शिव की पूजा कर रहा था। तब सहस्त्रबाहु ने अपनी हज़ार भुजाओं के बल से नर्मदा नदी का पानी रोक दिया था तथा रावण को पराजित करके उसे बंदी बना लिया था। उसके बाद रावण के दादा ऋषि पुलत्स्य के कहने पर उसने रावण को अपने कारावास से मुक्त किया था और लंका वापस जाने दिया था।

सहस्त्र अर्जुन की एक गलती

एक बार सहस्त्रबाहु अपनी सेना के साथ भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम गए थे। वहां उन्हें उनकी कामधेनु गाय पसंद आ गयी थी लेकिन ऋषि जमदग्नि ने उन्हें यह देने से मना कर दिया। इसके पश्चात अपने अहंकार में राजा सहस्त्रबाहु ने बल का प्रयोग कर आश्रम को तहस-नहस कर दिया तथा वहां से गाय लेकर चले गए। उस समय भगवान परशुराम आश्रम में नही थे लेकिन जब परशुराम वापस आये तो उनका क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया था।

सहस्त्र अर्जुन का कुल समेत वध (Sahastrabahu Vadh)

भगवान परशुराम अपना परशु/ कुल्हाड़ी लेकर महिष्मति नगरी गए तथा राजा सहस्त्रबाहु की सारी भुजाएं काट डाली और उसका वध कर डाला। राजा के वध के पश्चात जब परशुराम तीर्थयात्रा पर गए हुए थे तब सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर (Sahastrabahu Ka Vadh Kisne Kiya) दी। इससे कुपित होकर भगवान परशुराम ने सहस्त्रबाहु के कुल का इक्कीस बार नाश कर दिया था तथा हैहय वंश का नामोनिशान मिटा दिया था।

इसलिये कहा जाता हैं कि भगवान परशुराम ने 21 बार इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया (Parshuram Dwara Sahastrabahu Vadh) था जबकि उन्होंने क्षत्रिय वंश की एक जाति हैहय वंश का 21 बार नाश किया था। जहाँ एक ओर, राजा सहस्त्रबाहु ने तीनों लोकों के राजा रावण को पराजित कर अपनी कीर्ति का लोहा मनवाया था तो वही दूसरी ओर, उनकी एक गलती के कारण केवन उनका नहीं बल्कि उनके समूचे वंश का नाश हो गया था।

हम सभी यह तो जानते हैं कि दुष्ट राजा रावण का वध भगवान श्रीराम के हाथों हुआ था। इससे पहले भी वह कई राजाओं से हार चुका था जिसमें से किष्किन्धा नरेश बालि से हुई पराजय प्रमुख (Ravan Sahastrabahu Yudh) है। किंतु क्या आप जानते हैं कि एक बार रावण का महिष्मति के राजा सहस्त्रबाहु से भी भयंकर युद्ध हुआ था जिसमें उसकी बुरी तरह पराजय हुयी (Ravan Aur Sahastrabahu Yudh) थी। आज हम आपको उसी घटना के बारे में विस्तार से बताएँगे।

रावण और सहस्त्रबाहु का युद्ध (Sahastrabahu Ravan Ki Ladai)

सहस्त्रबाहु था महिष्मति का राजा

जब रावण लंका पर राज कर था तब समुंद्र के उस पार महिष्मति नदी के किनारे राजा सहस्त्रबाहु का राज्य था। सहस्त्रबाहु बहुत शक्तिशाली राजा था जिसकी एक हज़ार विशाल भुजाएं थी। इसी कारण उसे सहस्त्रबाहु के नाम से जाना जाता था अर्थात हजार भुजाओं वाला। वास्तव में उसका नाम सहस्त्रार्जुन था। वर्तमान में उसका राज्य मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी के किनारे माना जा सकता है।

रावण आया था महिष्मति नगरी (Sahastrabahu Ravan Ki Katha)

रावण के अंदर पृथ्वी के साथ-साथ तीनों लोकों पर अपना अधिकार करने की लालसा थी। इसी के लिए वह समय-समय पर विभिन्न राज्यों पर आक्रमण करके उन्हें अपने अधिकार क्षेत्रर में ले लिया करता था। रावण के इसी विश्व विजयी अभियान के कारण सब जगह भय व्याप्त था।

एक बार रावण अपने विश्व विजय अभियान के लिए महिष्मति नगरी पर आक्रमण करने आया था। युद्ध से पहले वह नर्मदा नदी के किनारे भगवान शिव की आराधना कर रहा था। उसके लिए उसने नर्मदा के घाट पर शिवलिंग की स्थापना की तथा विधिवत रूप से पूजा-अर्चना करने लगा।

राजा सहस्त्रबाहु ने रोक दिया नर्मदा का पानी

उसी समय नर्मदा नदी के उस ओर राजा सहस्त्रबाहु अपनी पत्नियों के संग स्नान करने आये हुए थे। वे उन सभी के साथ जल क्रीड़ा कर रहे थे। उन्होंने अपना पराक्रम दिखाने के लिए अपने हज़ार हाथों का प्रयोग करते हुए नर्मदा नदी का बहाव दोनों ओर से रोक दिया।

नर्मदा नदी का बहाव रुक जाने से रावण की पूजा का सारा सामान भी नदी में बह गया तथा उसका ध्यान भंग हो गया। यह देखकर वह अत्यधिक क्रोधित हो गया तथा इसी अहंकार में उसने राजा सहस्त्रबाहु को युद्ध की चुनौती दे डाली।

सहस्त्रबाहु के साथ युद्ध में हुई रावण की पराजय (Ravan Vs Sahastrabahu)

राजा सहस्त्रबाहु ने भी रावण की चुनौती स्वीकार कर ली तथा दोनों के बीच भीषण युद्ध शुरू हो गया। कई देर तक यह युद्ध चलता रहा लेकिन अंत में राजा सहस्त्रबाहु ने अपने हज़ार हाथों के बल का प्रयोग करते हुए रावण को उसमे जकड़ (Sahastrabahu Aur Ravan Yudh) लिया। रावण ने उसके हाथों से निकलने का बहुत प्रयास किया लेकिन असफल रहा। इस प्रकार राजा सहस्त्रबाहु ने रावण को पराजित कर दिया तथा उसे अपने कारावास में बंदी बना लिया।

ऋषि पुलत्स्य ने छुड़वाया रावण को

जब कई दिनों तक रावण सहस्त्रबाहु के कारावास में रहा तो लंका राज्य में चिंता होने लगी। सभी अपने राजा रावण को ना पाकर चिंतित थे और वहां की सेना नेतृत्वविहीन ही चुकी थी। तब महर्षि पुलत्स्य जो रावण के दादा भी थे, वे महिष्मति नगरी गए और सहस्त्रबाहु से मिले।

उन्होंने सहस्त्रबाहु को रावण को छोड़ देने का आग्रह किया ताकि लंका का संचालन सुचारू रूप से हो सके। ऋषि पुलत्स्य के कहने के पश्चात सहस्त्रबाहु ने रावण को कारावास से मुक्त कर दिया। इसके बाद रावण चुपचाप अपनी नगरी लंका आ गया।

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